महाभारत युद्ध इतिहास, कारण विकिपीडिया
महाभारत का इतिहास
शांतनु - हस्तिनापुर का राजा ( प्रतीप का पुत्र )
पत्नियां - गंगा ( जहनु ऋषि की पुत्री ) और सत्यवती ( निषाद पुत्री )
1. शांतनु का प्रथम विवाह गंगा से हुआ जिसका पुत्र देवाव्रत हुआ जो आगे चलकर भीष्म नाम से जाना जाने लगा । जबकि गंगा ने आठ पुत्रो को जन्म दिया था जिन्हे नदी में भा दिया गया था ।
2. शांतनु का द्वितीय विवाह सत्यवती से हुआ सत्यवती का एक पुत्र पहले से ही महर्षि वेदव्यास था जो कि पराशर ऋषि का पुत्र था . सत्यवती ने शांतनु से विवाह से पूर्व ही यह शर्त रखी कि हमसे जन्मा पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा जबकि शांतनु ओर गंगा का पुत्र देवाव्रत पहले से ही राजा बन चुका था देवाव्रत ने अपने पिता के दूसरे विवाह में आ रही अर्चनो के कारण ब्रह्मचारी बनने की भीष्म प्रतिज्ञा ली जिस कारण उसका नाम भीष्म पडा ।
सत्यवती ने दो पुत्रो को जन्म दिया
(1) चित्रागंदा (2) विचित्रविर्य
शांतनु का देहांत उसके दोनों पुत्रो के बाल्यकाल में ही हो गया था चूंकि विचित्रविर्य बड़ा था तो उस राजगद्दी पर बैठाया गया था परन्तु गंधर्वो से युद्ध करते हुए चित्रागंदा की मृत्यु हो गई ।
* विचित्रविर्य - भीष्म ने चित्रागंदा की मृत्यू के बाद विचित्रविर्य को राजा बना दिया विचित्रविर्यका विवाह एक ही राजा की दो पुत्रियों अंबिका ओर अंबालिका से करवा दिया गया विचित्रविर्य के विवाह के कुछ दिनों पश्चात उसकी मृत्यू हो गई
अब राज्य का राजकाज उसकी माता सत्यवती पर आ गया लेकिन बुन्हे राजा चुनने की चिंता थी चूंकि भीष्म ने ब्रह्मा चरी बनने की प्रतिज्ञा ली थी अंततः सत्यवती ने अपने पूर्व पुत्र महर्षि वेदव्यास को बुलवाया ।
तब राजमाता सत्यवती के कहने पर महर्षि वेदव्यास के वरदान के रूप में अंबिका को धृतराष्ट्र हुआ ( कहा जाता है कि जब अंबिका महर्षि वेदव्यास के पास पहुंची तो अंबिका को उनके चेहरे का तेज देखा नहीं गया और अपनी आंखे बंद कर ली इस वजह से धृतराष्ट्र अंधा पैदा हुआ ) तथा अंबलिका को पांडु पुत्र हुआ
तथा महर्षि वेदव्यास ने अंबिका के भ्रम में अंबिका की दासी द्वारा विदुर का जन्म हुआ ।
* धृतराष्ट्र अंधे होने के कारण राजा नहीं बन सके तथा विदुर रानी की कोख से नहीं जन्मे थे इसीलिए पांडु को ही राजा बना दिया गया ।
* धृतराष्ट्र - धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से का दिया गया । धृतराष्ट्र की इच्छा थी कि उसकी पत्नी नेत्रों वाली हो विवाह से पूर्व जब गांधारी को यह पता चला की उसका पति नेत्र हिन है उसने भी अपनी आंखो पर सदैव के लिए पट्टी बांध ली गांधारी को 100 पुत्र ओर एक पुत्री का शिव का वरदान था
जब धृतराष्ट्र को पता चला कि गांधारी ने आंखों पर पट्टी बांध ली है तो वह बहुत क्रोधित हुए ओर उसे अपने पत्नी अस्वीकार किया
गांधारी के भाई शकुनि ने जब धृतराष्ट्र को 100 पुत्रो के वरदान के बारे में बताया तो धृतराष्ट्र ने गांधारी को पत्नी स्वीकार कर लिया 15 महीनों के बाद गांधारी ने एक मांस के टुकड़े को जन्म दिया जिसे महर्षि वेदव्यास ने 101 मटको में गर्भ की तरह वातावरण निर्मित किया इसके बाद सबसे पहले जन्मा पुत्र दुर्योधन था उसके बाद धृतराष्ट्र से गांधारी की दासी से एक पुत्र युयुत्सु हुआ
जबकि गांधारी ने 100 पुत्र ओर एक पुत्री दुशाला हुई इस तरह धृतराष्ट्र की कुल 102 सनतने हुई ।
* पांडु - पांडु का विवाह कुंती ओर माद्री से हुआ एक दिन पांडु अपनी दोनों पत्नियों के साथ वन भ्रमण के लिए निकले वन में हिरण के भ्रम में पांडु ने तीर चला दिया वह जाकर ऋषि मुनि को लगा जो कि अपनी पत्नी के साथ सहवास कर रहे थे ऋषि मुनि की मृत्यु तीर लगने से हुई ओर मृत्यू से पहले पांडु को श्राप दिया कि जब तुम भी सहवसरत होंगे तो ऐसे ही मृत्यू तुम्हारी होगी
उस समय पांडु को कोई पुत्र नहीं था पांडु ने यह घटना के बारे में कुंती को बताया तो कुंती ने कहा कि मुझे दुर्वासा ऋषि का वरदान है कि वह जिस देव का आवाहन करेगी उसको मनोवांछित वस्तु प्राप्त होगी उसने मंत्र का उपयोग करके धरमराज को आमंत्रित किया और पुत्र की इच्छा की उस युधिष्ठिर की प्राप्ति हुई कालांतर में पांडु के कहने पर कुंती ने वायुदेव से भीम ओर इन्द्र देव से अर्जुन की प्राप्ति की
तत्पश्चात कुंती ने पांडु के कहने पर माद्री को मंत्र की दीक्षा दी माद्री ने अश्वनी कुमार को आमंत्रित करके नकुल ओर सहदेव को जन्म दिया ।
शापवास पांडु की मृत्यु के बाद माद्री सती हो गई और पांचों पांडवो के लालन पोषण हेतु कुंती हस्तिनापुर लौट आई ।
पांचों पांडव 15 साल की उम्र तक वन में ही पले बड़े थे ।
* जब दुर्योधन को पता चला कि पांडु पुत्र कुरूवंश की राजधानी हस्तिनापुर वापस लौट रहे है तो दुर्योधन जलन ओर नफरत से भर उठा दुर्योधन उस समय राजा था मगर अचानक से सिंहासन के उत्तराधिकारी उभरकर आए तो उसे ये बात बर्दास्त नहीं हुई
पांडु को प्रजा बहुत प्यार करती थी उनकी देख रख पांडु ही करता था प्रजा को उनके बच्चे देखने की बड़ी मंशा थी । पांडव ने जब अाकर अपना सिंहासन मांगा तो दुर्योधन ने उन्हें खंडर रूपी वन दिया जिसे पांडव ने इंद्रप्रस्थ बनाया । पांचों पांडव ने गुरु द्रोणाचार्य के पास शिक्षा लेना प्रारम्भ कर दिया ।
100 कोरव बंधु ओर धृतराष्ट्र ओर गांधारी तथा विदुर ने उनका स्वागत किया पांडु ने महल में प्रवेश किया 100 कोराव बंधु में दुर्योधन सबसे बलशाली था दुर्योधन के द्वारा भीम को कुश्ती के लिए चुनौती दी गई कुश्ती में दुर्योधन हार गया दुर्योधन में पहले से ही पांडव के प्रति ईर्ष्या थी वह पांडवो को मारने की योजना बनाने लगा ।
द्रोपदी का स्वयंवर
पांचाल राज्य के राजा द्रुपद की पुत्री का स्वयंवर रचा गया . जिसमे दुर्योधन ,पांच पांडव ,राजा जरासंध भी था
जब-जब कोई राजा इस प्रतियोगिता की ओर आगे बढ़ता तो द्रौपदी कृष्ण की ओर देखती थी, ताकि उसे ये मालूम हो सके कि राजा विवाह योग्य है या नहीं। स्वयंवर में कर्ण आगे बढ़ा और उसने धनुष उठाकर उस प्रत्यंचा चढ़ा दी। कृष्ण जानते थे कि कर्ण स्वयंवर की शर्त पूरी कर सकता है, उन्होंने द्रौपदी को इशारा कर दिया कि ये तुम्हारे लिए उपयुक्त वर नहीं है। इशारा मिलते ही द्रौपदी ने घोषणा कर दी कि वह किसी सूत से विवाह नहीं कर सकती।
द्रोपदी के भाई ने कर्ण को स्वयंवर में भाग लेने से मना कर दिया और कर्ण वहां से अपमानित महसूस होकर क्रोधित होकर चले गए
स्वयंवर में पानी के अंदर मछली कि आंख भेदना था जिसमें दुर्योधन , जरासंध ,अर्जुन निपुर्ण थे जरासंध ने स्वयंवर छोड़ दिया और यह स्वयंवर को अर्जुन जीत गया और द्रोपदी से विवाह कर लिया ।
महाभारत युद्ध का कारण
हस्तिनापुर से जाने के बाद पांडवो ने इंद्रप्रस्थ का निर्माण कर राजसूय यज्ञ की योजना बनाई जिसमें दुर्योधन भी पहुंचा को उनका महल देखकर इर्ष्या से भर उठा महल में जल की भांति ताल समझकर दुर्योधन पानी में गिरता है जिसे देखकर द्रोपदी हंस पड़ती है उसे यह अपना अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ और बदला लेने के लिए उसने अपने मामा शकुनि की मदद से जुए के खेल की योजना बनाई दुर्योधन के आमंत्रण पर पांचों पांडव जुए खेलने के लिए आए और सब कुछ हार गए फिर पांडव ने द्रोपदी को दांव पर लगाया और उसे भी हार गए दुर्योधन ने द्रोपदी से बदला लेने के बाद लौटा दिया
युधिष्ठिर द्रोपदी के इस अपमान के कारण क्रोधित हो गए और फिर से अपना राज्य दांव पर लगाया और उसे भी हार गए दुर्योधन ने राज्य वापस लौटने की यह शर्त रखी कि वे 12 साल का वनवास पर चले जाए ।
जब 12 साल के बाद पांडव वापस आए और अपना राज्य वापस मांगा तो दुर्योधन ने नोक बराबर भी भूमि देने से इंकार कर दिया पांडव पहले से ही द्रोपदी के अपमान के कारण क्रोधित थे उन्होंने दुर्योधन को युद्ध के लिए चुनौती दी ।
युद्ध में संख्या -
कोरवो की सेना - 24,05,700 सैनिक
पांडव की सेना - 15,30,900 सैनिक
महाभारत युद्ध हरियाणा के कुरू क्षेत्र में लड़ा गया था जिसमें पांडव की विजय हुई ।
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