उत्तर वैदिक काल 1000-600 ईसा पूर्व

 उत्तर वैदिक काल(1000-600) ईसा पूर्व


उत्तर वैदिक काल के स्रोत्र 


1. पुरातात्विक स्त्रोत- चित्रित धूसर मर्दभंड, लौहा,स्थाई निवास


2. साहित्यिक स्रोत - 


साहित्यिक स्रोत सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद , उपनिषद्, आरण्यक से मिलते हैं ।


a. सामवेद- उत्तर वैदिक काल के बारे सामवेद से साक्ष्य मिले है। इसे संगीत का वेद भी कहा जाता है. तथा 7 स्वरो का सर्वप्रथम प्रयोग इस वेद से ही मिलता है ।


b. यजुर्वेद- यजुर्वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन मिलता है. यह गध और पद्य का वेद भी कहलाता है ।


c. अथर्ववेद- इसमें जादू टोना, वशीकरण,विवाह, मृत्यू आदि का वर्णन मिलता है. इसे ब्रह्मा वेद एवं श्रेष्ठ वेद कहा जाता है. यह सबसे बाद का वेद कहलाता है ।


d. उपनिषद् - उपनिषदों में उत्तर वैदिक काल के दौरान हो रहे कर्मकांडो की निन्दा की गई है ।


आरण्यक में उत्तर वैदिक काल के धार्मिक जीवन का वर्णन भी है ।


उत्तर वैदिक काल में 1000 bc के लगभग लोहे कि खोज ने सम्पूर्ण व्यवस्था को प्रभावित कर दिया था. जखेडा, हस्तिनापुर, नोह, से सर्वधिक लौह शस्त्र मिले है. उत्तर वैदिक ग्रंथों में लोहे को स्यम अयस तथा कृष्ण अयस कहा गया है ।


उत्तर वैदिक काल के दौर में मानव जीवन किस प्रकार प्रभावित हुआ । यह हम राजनीतिक जीवन,सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन,धार्मिक जीवन के बारे में चर्चा करेंगे ।


1. राजनीतिक जीवन-


* कबीलों का आकार बड़ा होने लगा था और उसे जनपद कहा जाने लगा ।

दो प्रमुख काबिले भरत जन तथा पुरू जन मिलकर कुरु जनपद बन गए थे ।


* पहले पूर्व वैदिक काल में राजा वंशानुगत नहीं होते थे . लेकिन उत्तर वैदिक काल के आते आते राजा का महत्व इतना बढ़ गया और राजा वंशानुगत हो गए ।


* राजा के अधिकार बढ़ने से सभा, समिति का महत्व कम हो गया था ।


* अधिकारियों की संख्या बढने लगी थी जिन्हें रत्तनिन कहा जाता था 


रत्तनीन (पदाधिकारी) 

1. राजा 

2. सेनानी    - सेनापति

3. पुरोहित   - मंत्री

4. युवराज   - राजा का बड़ा बेटा

5. महिषी।   - पटरानी

6. सुत        - सारथी 

7. ग्रामीण    - लड़ाकू डाल का नेता 

8. संग्रहित्र   - कोषाध्यक्ष

9. भागदुध।  - कर संग्रहकर्ता 

10. अक्षावाप- पासे के खेल में राजा का सहयोगी

11. पालगल- राजा का मित्र और विदूषक का पूर्वज



* कर व्यवस्था का प्रसार होने लगा था ।इस काल में वैश्य ही कर चुकाते थे ब्राह्मण ओर क्षत्रिय वैश्य से वसूले गए कर पर राजस्व करते थे. और शुद्र इन तीनो वर्णों की सेवा करता था


* सेना एवं न्याय पूर्ण स्थाई नहीं था ।


2. सामाजिक जीवन


* कबीलों से बड़े होकर जनपद बन गया था । और ये पहले परिवार और फिर ग्राम फिर विश ओर फिर जन ओर बाद में जनपद बनता था ।

आप इसे ऐसे भी समझ सकते हो 

 परिवार<ग्राम <विश< जन <जनपद



*उत्तर वैदिक काल में मानव कर्म पर ना होकर जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था में बंट चुका था । चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र


चारो वर्णों में से तीन उपनयन संस्कार के अधिकारी हुआ करते थे । परन्तु शुद्र नहीं होता था ।यही से शुद्रो को अपात्र ओर आधारहीन माना जाने लगा ।


* गोत्र अर्थात गोधन एकत्रित होना - गोत्र शब्द की उत्पत्ति उत्तर वैदिक काल में हुई . गोधन का मतलब है गाय को इक्कठा करके रखना एक गोत्र का माना जाता था। समान गोत्र में विवाह ना करने का रिवाज यही से प्रचलित हुआ 



* जबलोपनिशद में चार आश्रम की व्यवस्था का वर्णन भी मिलता है ।

ब्रह्मचर्य  ( 0-25 वर्ष)

गृहस्थ (25-50वर्ष) 

वानप्रस्थ (50-75वर्ष) 

सन्यास (75-100वर्ष) 



* उत्तर वैदिक ज्योतिष में स्त्रियों की स्तिथि में गिरावट आ चुकी थी स्त्रियों से पैतृक सम्पत्ति से अधिकार छीन लिया गया और सभा में जाना बंद कर दिया गया ।



*  विवाह के  8 प्रकार 


ब्रह्मा विवाह - लड़की का पिता अपनी इच्छा से अपनी पुत्री को किसी उपयुक्त पति को बिना कुछ प्रतिफल लिए देने का प्रस्ताव करता था ।


देव विवाह - पिता अपनी पुत्री पुरोहित को ब्याहते थे ।


आर्ष विवाह - विवाह करने वाला पुरुष कन्या के पिता के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए ,ना की प्रतिफल के रूप में ,उसे बैलों की एक जोड़ी देता था ।



प्रजापत्य विवाह - विवाह का प्रस्ताव विवाहरथी की ओर से आता था ।


आसुर विवाह - विवाह करने वाले पुरुष की ओर से लड़की के पिता को नकद या वस्तुओ के रूप में प्रतिफल दिया जाता था. यह प्रतिफल विवाह के बाद पुरुष को लौटा दिया जाता था ।

 

अासुर विवाह केवल वैश्य व शुद्र में होता था ।


गंधर्व विवाह- प्रेम विवाह, माता पिता की अनुमति नहीं होती थी ।


गंधर्व विवाह केवल  क्षत्रिय में होता था ।


राक्षस विवाह - कन्या का अपहरण करके विवाह करना।


पैशाच विवाह - कन्या से बलात्कार कर उससे विवाह करना 


ब्राह्मणों के लिए केवल प्रथम चार विवाह ही विहित थे ।



3. आर्थिक जीवन 


* लोहे की खोज के कारण उत्तर वैदिक काल का प्रमुख व्यवसाय कृषि बन चुका था । 

शतपथ ब्राह्मण' में कृषि से संबंधित चारों क्रियाओ जुताई बुआई कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख किया गया है। उनकी मुख्य फ़सल जौ, चावल, गेहूं, उड़द, मूंग, तिल, मसूर आदि थी फसल उगाने के लिए खाद का भी प्रयोग किया जाता था ।



* कृषि के बाद उनका दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था ।


* गाय ,घोड़ा , बैल, बकरी, ऊंट , हाथी, भैंस गधा आदि मुख्य पशु थे । 


* अथर्ववेद के एक सूक्त में गाय , बैल और घोड़े की प्राप्ति के लिए इन्द्र से प्राथना का वर्णन किया गया है ।


* शतपथ ब्राह्मण में हल संबधी अनुष्ठान का वर्णन मिला है ।


* काष्ठक संहिता में 24 बैलों द्वारा जुताई का वर्णन मिला है ।


* चावल को वैदिक ग्रंथों में ब्रीहि कहा गया है 


* ऐतरेय ब्राह्मण में गधे को अश्विन देवताओं की गाड़ी खींचते हुए दिखाया गया है।


* द्वितीय नगर का वर्णन मिला है ।



4. धार्मिक जीवन


* यज्ञ का महत्व बढ़ चुका था . यज्ञ में पशु बलि दिए जाने लगी थी ।


* इस काल में वर्ण व्यवस्था इतनी कठोर रूप धारण कर चुकी थी । सब वर्णों के अपने अलग अलग देवता थे ।


विष्णु      - पोषण एवं रक्षक के देवता 

रुद्र         - पशुओं के देवता 

वरुण      - जल के देवता

पुषण      - शुद्र के देवता 



* कई कर्मकांड यज्ञ करवाए जाते थे . जिनमे कुछ यज्ञ जैसे 

राजसूय यज्ञ - प्रतिष्ठा हेतु कराया जाता था ।

वाजपे यज्ञ   - शक्ति का प्रदर्शन करने हेतु कराया जाता था ।

अश्वमेघ यज्ञ - राज विस्तार के लिए कराया जाता था इस यज्ञ में घोड़े छोड़े जाते थे ।


* यज्ञ कर्मकांड में बली की इतनी प्रधानता थी कि 24 हजार बैलों की बलि दी जाती थी ।

  


इस काल में इतनी बलि ओर इन सब कर्मकांडो तथा अंधविश्वास के विरूद्ध   गौतम बुद्ध ने इश्वर को ना मानकर (नास्तिक) और इन सभी कर्मकांडो से परे बौद्ध धर्म की स्थापना की । 


तथा इन कर्मकांडो से परे एक और धर्म जैन धर्म की स्थापना ऋषभ देव ने कि ।


पूर्व वैदिक काल के लिए पिछली पोस्ट पढ़े ........


    


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