वैदिक सभ्यता (1500-600 ईसा पूर्व ) में ऋग्वैदिक काल

 

वैदिक सभ्यता ( 1500-600 ईसा पूर्व)


सिंधु घाटी सभ्यता के बाद वैदिक सभ्यता का काल रहा । इस सभ्यता के जानकारी के स्रोत् वेदों से मिलते है । इसीलिए इसे वैदिक सभ्यता कहा जाता है । वैदिक शब्द "वेद"से बना है । जिसका अर्थ होता है "ज्ञान"
वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्य थे । अनेकों भाषाओं में श्रेष्ठ को आर्य कहा जाता था ।

आर्य का मूलनिवास - निर्माता

1. मैक्समूलर - मैक्समूलर के अनुसार आर्य मध्य एशिया से आए थे ।

2. डॉ संपूर्णानंद - के अनुसार आवास पर्वत से आए
थे ।

3. बाल गंगाधर तिलक - के अनुसार आर्कटिक ( उत्तरी ध्रुव ) से आए थे ।

4. स्वामी दयानन्द सरस्वती- के अनुसार तिब्बत से आए थे ।

वैदिक सभ्यता के स्रोत

1. पुरतत्विक स्रोत - बेगाजकोई अभिलेख से इन्द्र ,वरुण , मित्र, नासत्य का उल्लेख मिला है ।

2. साहित्यक स्रोत- साहित्यिक स्रोत में चार वेदों का वर्णन है जिससे वैदिक सभ्यता के लिखित साक्ष्य मिले है । चार वेद कुछ इस प्रकार है।
A. ऋग्वेद
B. सामवेद
C. यजुर्वेद
D. अथर्ववेद

यह दौर इतिहास का वह दौर था जिसमें लिखित साक्ष्य मिले भी और उन्हें पढ़ा भी गया । चार वेद को दो काल में बांटा गया है।

1. ऋग्वैदिक काल या पूर्व वैदिक काल  (1500-1000) ईसा पूर्व

2. उत्तर वैदिक काल (1000-600) ईसा पूर्व
   

1. ऋग्वैदिक काल या पूर्व वैदिक काल

यह वेद सबसे प्राचीन वेद कहलाता  है । ऋग्वैदिक काल के साक्ष्य ऋगवेद से ही मिलते है ।
* ऋग्वेद में 10 मण्डल तथा 1028 सूक्त है ।
* ऋग्वेद के संकलन कर्ता कृष्ण द्वैपायन तथा वेदव्यास है ।
* ऋग्वैद के तृतीय मण्डल में गायत्री मंत्र का उल्लेख मिलता है ।
* तथा सातवें मण्डल में दसरागय युद्ध का वर्णन मिलता है । यह युद्ध रावी नदी के तट पर सुदास तथा दस जनो के बीच लड़ा गया था ।
*नोवा मण्डल सोमदेवता को समर्पित मण्डल कहलाता है ।

* दसवां मण्डल में वर्ण्यवस्था का वर्णन मिलता है । अर्थात ऋग्वैदिक काल से ही ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र की विचारधारा उत्पन्न  हुई ।

ऋग्वैदिक काल में मानव जीवन

1. राजनीतिक जीवन-

* कबिलाई जीवन (जन) - ऋग्वैदिक काल में मानव कबीलों में बंटे हुए थे । कबीलों का समूह बड़ा होता था इसलिए उन्हें जन कह कर संबोधित किया जाता था ।

* कबीलों की देख रेख़ तथा संरक्षक के लिए पद होता था । जिसे राजन (राजा) कहा जाता था । राजन की सहायता के लिए समूह बनाए गए थे ,न्याय समूहों द्वारा किया जाता था ।

a. समिति - यह आम लोगो का समूह होता था जिसमें पुरुष और महिला दोनो होते थे ।

b. सभा- इसमें सीमित कुलीनों की संख्या थी ।कुलीन अर्थात पढ़े लिखे ,समाज के उच्च वर्ग ।

c. विदत्त- यह सबसे प्राचीन संस्था थी । इस समूह या संस्था में पुरुष और महिला दोनो होते थे यह कबीलों में आपस में हुए युद्ध के दौरान लूट को बांटने तथा उपज के भाग को बांटने की सलाह देते थे ।

d. गण- सभा के समान इसमें भी कुलीनों की संख्या थी ।

इन चार संस्था के सलाह के बाद ही राजन निर्णय करता था । अर्थात राजन के पास सीमित अधिकार ही प्राप्त थे ।

* अधिकारियों को रतनिन कहा जाता था ।
*  सेना नियमित नहीं थी । युद्ध के दौरान सेना बन जाती थी लेकिन युद्ध के बाद फिर से सेना आम लोगो की तरह रहने लगती थी ।

* बलि- यह सुवेच्छा से दिया जाने वाला कर था । उस समय कर देने पर कोई दबाव नहीं था।

2. सामाजिक जीवन -

* पूर्व वैदिक काल में सामाजिक जीवन पूर्णतः समतावादी था ।

* कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था थी । इसका जिक्र ऋग्वेद के 9 वे मण्डल में किया गया है।

* दास प्रथा का प्रचलन था
* महिलाओं की स्थिति अच्छी थी - शिक्षा का अधिकार था ,पर्दा प्रथा नहीं थी ।

*मनोरंजन के खेल - जैसे पासा , नृत्य आदि ।

3. आर्थिक जीवन

*अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार पशुपालन था ।
* गाय का अधिक महत्व था ।

*घोड़े का महत्व कम था ।
* कृषि का महत्व कम था ।
* तांबे बका प्रयोग अधिक किया जाता था ।
* व्यापार - कबीलों में आपस में वस्तु विनिमय द्वारा किया जाता था । अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु लेना ।
* क्योंकि मुद्रा की खोज नहीं थी ।

4. धार्मिक जीवन

* पूर्व वैदिक क़ाल में प्रकर्तिक की पूजा किया करते थे तथा बहुदेव वादी थे ।

* देवता को तीन रूपों में बांटा गया था  । जैसे अंतरिक्ष के देवता, पृथ्वी के देवता, आकाश के देवता

* अंतरिक्ष के देवता - इन्द्र, मारूत, रुद्र, वायु आदि ।
* पृथ्वी के देवता- अग्नि, पृथ्वी, सोम, बृहस्पति आदि
*  आकाश के देवता - सूर्य,वरुण,सविता, विष्णु , ऊषा आदि

*प्राय प्रमुख देवता के भिन्न रूप -
इन्द्र देवता- सबसे प्रमुख देवता था जिसे पुरंदर के नाम से जाना जाता था ।

अग्नि देवता - मध्यस्त देवता भी कहा जाता था क्योंकि यह भगवान और इंसान के बीच का देवता कहलाता था । माना जाता था कि अग्नि में बली देने से हमारी कामनाएं भगवान तक पहुंचाती  थी ।

वरुण - वरुण को वर्षा के देवता, समुद्र के देवता कहा जाता था ।

सविता - चमकता सूर्य कहा जाता था ।जो कि गायत्री मंत्र से सम्बन्धित है ।

अश्विन - वेध व चिकत्सक के देवता कहा जाता था।
पूषण - पशुओं तथा ओषधी के देवता ।
सोम - वनस्पति के देवता ।

ऋग्वैदिक काल के सभी साक्ष्य ऋग्वेद से मिले लेकिन उत्तर वैदिक काल के साक्ष्य अन्य वेद सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद से मिले है । जिनके बारे में जानने के लिए अगली पोस्ट पढ़े ।.........

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